एक डोर में सबको जो है बांधती

वह हिंदी है

हर भाषा को जो सगी बहन मानती

वह हिंदी है।

भरी-पूरी हों सभी बोलियां यही

कामना हिंदी है

गहरी हो पहचान आपसी यही

साधना हिंदी है

सौत विदेशी रहे ना रानी

यही भावना हिंदी है

तत्सम, तद्भव, देशी, विदेशी

सब रंगों को अपनाती

जैसे आप बोलना चाहें वही मधुर,

वह मन भाती।

गिरिजाकुमार माथुर

 

गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोकनगर (मध्यप्रदेश) में हुआ था। वे आधुनिक हिंदी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे। उनकी शिक्षा आगरा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई, जहाँ से उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। माथुर जी की पहचान विशेष रूप से नयी कविता आंदोलन के प्रवर्तकों में होती है। उन्होंने हिंदी कविता को नई संवेदना, आधुनिकता और प्रयोगशीलता दी। उनकी प्रसिद्ध पंक्ति “नए रास्ते, नई मंज़िलें” नयी कविता का घोषवाक्य मानी जाती है। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन में भी कार्य किया और लंबे समय तक हिंदी साहित्य व संस्कृति को समर्पित रहे।

उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति, मानवीय संवेदना, भाषा-प्रेम और प्रगतिशील दृष्टि साफ दिखाई देती है। उनकी चर्चित कृतियाँ हैं-मुक्तिप्रभा,मैले नए चाँद,पृथ्वीतल,आकाश के तारों का संगीत, पानी के प्राचीर ,हिंदी दिवस पर अक्सर उनकी कविता “हिंदी हमारा प्रण है” और “हिंदी जन की बोली है” उद्धृत की जाती है। गिरिजाकुमार माथुर का निधन 10 जनवरी 1994 को हुआ।

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