- Post by Admin on Sunday, Aug 31, 2025
- 601 Viewed
![]()
जो तुम आ जाते एक बार....महादेवी वर्मा
जो तुम आ जाते एक बार,
कितनी करुणा कितने सँदेश,
पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार,
अनुराग-भरा उन्माद-राग;
आँसू लेते वे पद पखार !
जो तुम आ जाते एक बार !
हँस उठते पल में आर्द्र नयन,
घुल जाता ओठों से विषाद,
छा जाता जीवन में वसंत,
लुट जाता चिर-संचित विराग;
आँखें देतीं सर्वस्व वार |
जो तुम आ जाते एक बार !- महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका और समाजसेविका थीं, जिन्हें आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। वे छायावादी काव्य धारा की चार प्रमुख स्तंभों में से एक थीं। उनकी कविताओं में गहन करुणा, संवेदनशीलता और आध्यात्मिक प्रेम की झलक मिलती है। उन्होंने स्त्रियों की पीड़ा, समाज में उनकी स्थिति और मानवीय संबंधों की सूक्ष्म भावनाओं को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया। उनकी प्रमुख कृतियों में यामा (जिसके लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला), नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत शामिल हैं। साहित्य के साथ-साथ वे शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में भी सक्रिय रहीं। महादेवी वर्मा ने अपने जीवन और साहित्य के माध्यम से स्त्री चेतना और मानवीय मूल्यों को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।
अन्य समाचार
अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव उन्मेष 2025 : वरिष्ठ साहित्यकार दीनदयाल साहू को 24 भाषाओं और 70 आदिवासी समुदायों के लेखकों के बीच छत्तीसगढ़ी कहानी वाचन के लिए आमंत्रित किया गया
देश–विदेश से आए कथाकारों, उपन्यासकारों और शोधार्थियों के बीच इस तीन दिवसीय महोत्सव में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने का सौभाग्य मिला भिलाई नगर निवासी वरिष्ठ साहित्यकार और संपादक दीनदयाल साहू को
Read More...
सत्यदर्शन साहित्य : भरी-पूरी हों सभी बोलियां,यही कामना हिंदी है...गहरी हो पहचान आपसी,यही साधना हिंदी है...गिरिजाकुमार माथुर
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोकनगर (मध्यप्रदेश) में हुआ था। वे आधुनिक हिंदी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे
Read More...
सत्यदर्शन साहित्य... प्रिय गीत तुम्हें मैं गाऊंगा : छत्तीसगढ़ की आत्मा से जुड़ा गीत-संग्रह
छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार चम्पेश्वर गोस्वामी द्वारा रचित गीत-संग्रह “प्रिय गीत तुम्हें मैं गाऊंगा” साहित्य और संगीत की दुनिया में एक नई पहचान बना रहा है।
Read More...
लोक संस्कृति के अमर राग: 69 वर्षीय दुर्वासा कुमार टण्डन को मानद डॉक्टरेट उपाधि
69 वर्षीय प्रसिद्ध लोक कलाकार दुर्वासा कुमार टण्डन ने यह साबित कर दिया कि सच्ची लगन, निरंतर साधना और संस्कृति के प्रति अटूट प्रेम उम्र की सीमाओं को लांघ सकता है।
Read More...
आत्मचिंतन : धरती पर जब पहली बार मानव ने आँख खोली थी, तब उसके हाथ में न मोबाइल था, न मशीन! बस एक बीज था और आकाश में टकटकी लगाए विश्वास की दृष्टि
वे वृक्षों को अपना कुल-गोत्र कहते हैं, हर पशु पक्षी में अपना पूर्वज ढूँढ़ते हैं, और हर नदी में माँ का आशीष। पर विडंबना यह कि हम, स्वयं को 'सभ्य' कहने वाले, उसी धरती और जंगल को बेचकर अपनी तरक्की के महल खड़े कर रहे हैं।
Read More...
साहित्य और संवेदना का संगम : छत्तीसगढ़ी व्यंग्य साहित्य को समर्पित भव्य आयोजन
छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह ‘कलंकपुर के कलंक’ का विमोचन, पर्यावरण संरक्षण के तहत वृक्षारोपण और सांस्कृतिक सौंध से सुवासित काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुई।
Read More...
सावन...जब पेड़ हरियाली ओढ़ लेते हैं, नदियाँ गीत गाने लगती हैं और मन भी भीग जाता है
लघुकथा : गांव के छोटे से खेत में रहने वाला बालक अर्जुन, हर दिन की तरह उस दिन भी सुबह जल्दी उठ गया। लेकिन आज की सुबह कुछ अलग थी।
Read More...
किसान की हरियाली को कागज़ी बंदिशों में मत घुटने दो
हर बार जब सरकार कोई नया कानून लाती है और कहती है कि यह “किसानों के हित में” है, तभी किसान का मन किसी अघोषित आपातकाल की तरह कांप उठता है
Read More...
हर बूंद में उम्मीद, हर बादल में कहानी और हर गरज में साहस ढूँढने की जरूरत
बारिश की रिमझिम बूंदें केवल मौसम को नहीं भिगोतीं, बल्कि हमारे मन-मस्तिष्क को भी प्रभावित करती हैं।
Read More...
समसामयिक लेख: क्या सचमुच हम इस पृथ्वी पर रहने योग्य प्राणी हैं?
एक बार फिर पाँच जून आ पहुँचा है। यानी वह दिन जब हम “विश्व पर्यावरण दिवस” के नाम पर बड़ी श्रद्धा से एक बार फिर सारी घिसी-पिटी औपचारिकताएँ निभाएँगे।
Read More...