- Post by Admin on Sunday, Sep 28, 2025
- 565 Viewed
![]()
कमलेश यादव : जब साहित्य अपनी जड़ों से जुड़कर वैश्विक धरातल पर गूंजता है, तब वह केवल शब्दों का संग्रह नहीं रहता, बल्कि संस्कृति और अस्मिता का जीवंत प्रमाण बन जाता है। यही दृश्य देखने को मिला एशिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव उन्मेष 2025 में, जहाँ छत्तीसगढ़ की धरती से निकली लोकधारा की सशक्त आवाज़ ने सबका मन मोह लिया।
गौरतलब है कि, नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित इस भव्य महोत्सव का आयोजन 25 से 28 सितम्बर तक पटना के रविन्द्र भवन में हुआ। भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय और बिहार सरकार के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न इस आयोजन ने साहित्य जगत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। इस अवसर पर भारत के उपराष्ट्रपति माननीय चंद्रपुरम पोन्नूसामी राधाकृष्णन, बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, भारत में स्पेन के राजदूत जुआन एंटोनियो, बुलगारिया के राजदूत निकोल यांकोव, और बांग्लादेश के राजदूत एम. रियाज हमीदुल्लाह जैसे विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे।
देश–विदेश से आए कथाकारों, उपन्यासकारों और शोधार्थियों के बीच इस तीन दिवसीय महोत्सव में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व करने का सौभाग्य मिला भिलाई नगर निवासी वरिष्ठ साहित्यकार और संपादक दीनदयाल साहू को। छत्तीसगढ़ी कहानी वाचन के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया, जहाँ उनके शब्दों ने छत्तीसगढ़ की बोली और लोकजीवन की खुशबू पूरे मंच पर बिखेर दी। उनकी प्रस्तुति ने यह साबित कर दिया कि क्षेत्रीय भाषाएँ केवल बोली नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और साहित्य की आत्मा हैं।
इस आयोजन में 24 भाषाओं और 70 आदिवासी समुदायों के लेखक शामिल हुए, जिससे यह महोत्सव विविधता और साहित्यिक समृद्धि का अद्भुत संगम बना। कार्यक्रम को सफल बनाने में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और उपाध्यक्ष-सचिव प्रो. कुमुद शर्मा का विशेष योगदान रहा।
वरिष्ठ दीनदयाल साहू की उपस्थिति ने न केवल छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि स्थानीय से वैश्विक तक साहित्य की यात्रा तभी संभव है जब हम अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करें।
अन्य समाचार
सत्यदर्शन साहित्य : भरी-पूरी हों सभी बोलियां,यही कामना हिंदी है...गहरी हो पहचान आपसी,यही साधना हिंदी है...गिरिजाकुमार माथुर
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोकनगर (मध्यप्रदेश) में हुआ था। वे आधुनिक हिंदी कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे
Read More...
सत्यदर्शन साहित्य... प्रिय गीत तुम्हें मैं गाऊंगा : छत्तीसगढ़ की आत्मा से जुड़ा गीत-संग्रह
छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गीतकार चम्पेश्वर गोस्वामी द्वारा रचित गीत-संग्रह “प्रिय गीत तुम्हें मैं गाऊंगा” साहित्य और संगीत की दुनिया में एक नई पहचान बना रहा है।
Read More...
जो तुम आ जाते एक बार....महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कवयित्री, लेखिका और समाजसेविका थीं, जिन्हें आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। वे छायावादी काव्य धारा की चार प्रमुख स्तंभों में से एक थीं। उनकी कविताओं में गहन करुणा, संवेदनशीलता और आध्यात्मिक प्रेम की झलक मिलती है।
Read More...
लोक संस्कृति के अमर राग: 69 वर्षीय दुर्वासा कुमार टण्डन को मानद डॉक्टरेट उपाधि
69 वर्षीय प्रसिद्ध लोक कलाकार दुर्वासा कुमार टण्डन ने यह साबित कर दिया कि सच्ची लगन, निरंतर साधना और संस्कृति के प्रति अटूट प्रेम उम्र की सीमाओं को लांघ सकता है।
Read More...
आत्मचिंतन : धरती पर जब पहली बार मानव ने आँख खोली थी, तब उसके हाथ में न मोबाइल था, न मशीन! बस एक बीज था और आकाश में टकटकी लगाए विश्वास की दृष्टि
वे वृक्षों को अपना कुल-गोत्र कहते हैं, हर पशु पक्षी में अपना पूर्वज ढूँढ़ते हैं, और हर नदी में माँ का आशीष। पर विडंबना यह कि हम, स्वयं को 'सभ्य' कहने वाले, उसी धरती और जंगल को बेचकर अपनी तरक्की के महल खड़े कर रहे हैं।
Read More...
साहित्य और संवेदना का संगम : छत्तीसगढ़ी व्यंग्य साहित्य को समर्पित भव्य आयोजन
छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह ‘कलंकपुर के कलंक’ का विमोचन, पर्यावरण संरक्षण के तहत वृक्षारोपण और सांस्कृतिक सौंध से सुवासित काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुई।
Read More...
सावन...जब पेड़ हरियाली ओढ़ लेते हैं, नदियाँ गीत गाने लगती हैं और मन भी भीग जाता है
लघुकथा : गांव के छोटे से खेत में रहने वाला बालक अर्जुन, हर दिन की तरह उस दिन भी सुबह जल्दी उठ गया। लेकिन आज की सुबह कुछ अलग थी।
Read More...
किसान की हरियाली को कागज़ी बंदिशों में मत घुटने दो
हर बार जब सरकार कोई नया कानून लाती है और कहती है कि यह “किसानों के हित में” है, तभी किसान का मन किसी अघोषित आपातकाल की तरह कांप उठता है
Read More...
हर बूंद में उम्मीद, हर बादल में कहानी और हर गरज में साहस ढूँढने की जरूरत
बारिश की रिमझिम बूंदें केवल मौसम को नहीं भिगोतीं, बल्कि हमारे मन-मस्तिष्क को भी प्रभावित करती हैं।
Read More...
समसामयिक लेख: क्या सचमुच हम इस पृथ्वी पर रहने योग्य प्राणी हैं?
एक बार फिर पाँच जून आ पहुँचा है। यानी वह दिन जब हम “विश्व पर्यावरण दिवस” के नाम पर बड़ी श्रद्धा से एक बार फिर सारी घिसी-पिटी औपचारिकताएँ निभाएँगे।
Read More...