लघुकथा : गांव के छोटे से खेत में रहने वाला बालक अर्जुन, हर दिन की तरह उस दिन भी सुबह जल्दी उठ गया। लेकिन आज की सुबह कुछ अलग थी। सावन की पहली बारिश रात में हुई थी। मिट्टी की खुशबू से उसका आंगन महक रहा था। पेड़ों की पत्तियाँ धोकर जैसे चमक उठी थीं।

अर्जुन नंगे पांव बाहर दौड़ा। आसमान से टपकती बूंदें अब भी उसकी हथेलियों पर गिर रही थीं। वह मुस्कुराया "ये तो जैसे खुद प्रकृति की ममता है।"

दादी आँगन में तुलसी के पास दीपक जला रही थीं। उन्होंने अर्जुन से कहा, “बेटा, सावन सिर्फ बारिश का नाम नहीं, ये तो धरती माँ के श्रृंगार का महीना है। जब पेड़ हरियाली ओढ़ लेते हैं, नदियाँ गीत गाने लगती हैं और मन भी भीग जाता है।”

अर्जुन ने पहली बार महसूस किया कि बारिश सिर्फ भिगोती नहीं हैं , दिल भी नरम कर देती है।

उस दिन से हर सावन में वह पेड़ लगाता है। उसका मानना है "जब प्रकृति हमें इतना देती है, तो हमें भी उसका साथ निभाना चाहिए।"

संदेश: सावन सिर्फ मौसम नहीं, प्रकृति से जुड़ने का सबसे सुंदर अवसर है।

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