महत्वपूर्ण तथ्य : • *कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का राज्य अर्थव्यवस्था में शानदार योगदान, लगभग 27 प्रतिशत,* 2024–25 में कुल अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी 27 प्रतिशत आंकी गई है। • *औसत खाद्यान्न उत्पादकता में चार गुना उछाल,* 2001 में लगभग 589 kg/ha से 2023 में लगभग 2,319 kg/ha तक। • *छत्तीसगढ़ का देश को तोहफा : MDBP-16 काली मिर्च और 'नेचुरल-ग्रीनहाउस' जैसे छत्तीसगढ़िया नवाचार,* कम पानी में चार गुना तक उपज, और पॉलिहाउस की तुलना में लागत में भारी कमी, छत्तीसगढ़ का ही नहीं बल्कि देश का संभावित गेम-चेंजर। • सिंचाई की धीमी वृद्धि-दर मात्र 0.43 प्रतिशत प्रतिवर्ष चिंता का विषय, हालांकि हाल के दिनों में सरकारी सोलर-पंप योजनाओं में उल्लेखनीय प्रगति ।

 

डॉ. राजाराम त्रिपाठी : जब वर्ष 2000 के आरंभ में छत्तीसगढ़ राज्य बना, तब यह महज कहावतों का ‘धान का कटोरा’ था। आधुनिक उत्पादकता, विविधीकरण और किसान-आय के लिहाज़ से लंबी दूरी तय करनी थी। इन पच्चीस वर्षों में परिदृश्य बदला है। औसत उत्पादन में बड़ा सुधार दिखता है। सरकारों ने विभिन्न कृषि योजनाएं बनाईं ।योजनाएँ खेतों तक पहुँची भी हैं, और योजनाओं के सकारात्मक परिणाम भी दिखाई देते हैं पर स्थायित्व और आय के मोर्चे पर अभी और बेहतरी की ज़रूरत है।

कृषि का आर्थिक महत्व और बजट का रुझान :- कृषि, पशुपालन, वानिकी और मत्स्यपालन मिलाकर कृषि-संबद्ध क्षेत्र आज भी राज्य अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, 2024–25 में कुल अर्थव्यवस्था में इनकी हिस्सेदारी लगभग 27 प्रतिशत अनुमानित है। *उल्लेखनीय है कि राज्य ने कृषि पर व्यय का अनुपात राष्ट्रीय औसत से ऊँचा रखा है,* 2024–25 में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों हेतु बड़ा प्रावधान किया गया, जिससे योजनाओं के प्रभाव को गति मिली। सरकार द्वारा किसानों की मुख्य फसल धान को समुचित मूल्य प्रदान करते हुए अधिकाधिक सरकारी खरीदी के निर्णय से प्रदेश के किसानों के सबसे बड़े समूह को सीधा फायदा पहुंचा है। जिससे गांवों में समृद्धि पहुंची है।

*क्षेत्र, उत्पादन, उत्पादकता और फसल विविधीकरण :-* 2001 में औसत खाद्यान्न उपज लगभग 589 kg/ha, 2023 में लगभग 2,319 kg/ha , यह चार गुना के आसपास सुधार है। गेहूँ में भी 2005 के ~853 kg/ha से 2023 में ~1,427 kg/ha तक उछाल दर्ज है। खरीफ धान लगभग 38.93 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बोया गया, सरकारी खरीद तंत्र ने धान-उत्पादक किसानों को सुरक्षा छतरी दी है। विविधीकरण की दिशा में मिलेट्स, दलहन-तिलहन, मसाले, औषधीय फसलें और सुगंधित धान आगे बढ़े हैं। *जीराफूल चावल और नगरी दूबराज जैसे सुगंधित धान को GI टैग मिला,* जिसने ब्रांड-मूल्य बढ़ाने का रास्ता खोला। *GI टैग हेतु प्राथमिकता सूची, जिसे राज्य-ब्रांड के रूप में उभारना चाहिए :-* आपके सुझाए स्थानीय जैव-विविधता के रत्नों को GI टैग के लिए व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाना समय की माँग है। *प्रस्तावित सूची के रूप में, बादशाह भोग, लोकटी माछी, झुनगा बीज, भेंडा टोपा, सलफी पेय, धान मिरी, चाऊर मिरी जैसी पारंपरिक किस्में और अनूठे महत्वपूर्ण उत्पाद* ,,

इनके दस्तावेजीकरण, विशिष्टता-प्रमाण और किसान समूहों के साथ GI आवेदन-प्रक्रिया पर मिशन मोड में काम जरूरी है। साथ ही, जिन किस्मों को पहले से GI मान्यता मिल चुकी है, जैसे जीराफूल और नगरी दूबराज, इनके लिए HS-कोड, ट्रेसेबिलिटी, निर्यात-पुश और ब्रांडिंग पर राज्य स्तर का रोडमैप बने, ताकि GI का लाभ सीधे किसान-आय में दिखे। *नवाचार जो खेल बदल सकते हैं, MDBP-16 काली मिर्च और नेचुरल ग्रीनहाउस:-* मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर, कोंडागांव द्वारा विकसित MDBP-16 काली मिर्च छत्तीसगढ़ की मिटटी तथा जलवायु के साथ ही देश के लगभग 16 राज्यों की जलवायु के भी अनुरूप तथा कम सिंचाई में भी उच्च उपज देने वाली किस्म है। दरअसल यह है छत्तीसगढ़ का पूरे देश के किसानों लिए एक नायाब तोहफा है जो किसानों की आज दुगनी नहीं दुगनी चौगुनी तक कर सकता है। इस विशेष प्रजाति के प्रमुख लाभ, • औसत भारतीय पेड़-उपज 1.5–2.5 किलो के मुकाबले लगभग 8–10 किलो प्रति पौधा तक वास्तविक खेत-नतीजे, यानी लगभग चार गुना उत्पादन या चार गुना ज्यादा आमदनी । •

कम पानी, उच्च तापमान और पेड़ों पर बेल-आधारित खेती के लिए अनुकूल, जिससे शुष्क क्षेत्रों के छोटे किसान भी मसाला-वैल्यू-चेन से जुड़ पाते हैं। • कोंडागांव बस्तर छत्तीसगढ़ की इस किस्म को भारत सरकार के प्लांट वैरायटी रजिस्ट्रार से पंजीकरण मिला है, और IISR-कोझिकोड जैसे संस्थानों द्वारा मान्यता का उल्लेख प्रकाशित रिपोर्टों में दर्ज है। यह विश्वसनीयता और विस्तार के लिए बड़ा संकेत है। छत्तीसगढ़ की देश को एक और महत्वपूर्ण देन है :- इसी ' मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर ' कोंडागांव रिसर्च सेंटर द्वारा विकसित किया गया 'नेचुरल ग्रीनहाउस' का सफल माडल ।

सर्वाधिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सक्षम विशेष प्रजाति की ऑस्ट्रेलिया टीक आकेशिया के विकसित पेड़ों से बने 'प्राकृतिक ग्रीनहाउस' के इस सफल मॉडल ने संरक्षित खेती को स्थानीय, किफायती ,टिकाऊ तथा उच्च लाभदायक बनाया है और खेती की समूची परिभाषा ही बदल दी है। • पारंपरिक पॉलिहाउस की लागत जहाँ लगभग ₹40 लाख प्रति एकड़ तक बैठती है, वहीं इस नेचुरल ग्रीनहाउस लगभग ₹ 1एक लाख प्रति एकड़ में संभव, फिर भी 60–70 प्रतिशत नैसर्गिक शेड, ताप-अंतर और नमी-संरक्षण उपलब्ध। •

यह मॉडल अभूतपूर्व नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सक्षम है। साल में 6 तन हरी खाद बनाता है। वाटर हार्वेस्टिंग करता है। इस तरह जैविक उर्वरक-कमी और क्लाइमेट-चेंज की चुनौतियों के बीच कम इनपुट, अधिक स्थायित्व का व्यावहारिक समाधान देता है, जिसे आदिवासी और सीमांत किसान तेज़ी से अपनाने में सक्षम हैं। इस प्लांटेशन में 90% खाली जमीन इंटरक्रॉपिंग के मिलती है। •

इसमें पेड़ों पर चढ़कर काली मिर्च तथा अन्य लता वर्गी फसलों से 100 फीट की ऊंचाई तक फसल ली जाती है यानी एक एकड़ को 50 एकड़ तक उत्पादक बनाने का सफल वैज्ञानिक कृषि फार्मूला। योजनाएँ और प्रभाव :- राजीव गांधी किसान न्याय योजना और गोदान न्याय योजना ने नकद-सहायता, इनपुट-सब्सिडी और जैविक मॉडल को बढ़ावा दिया, जिससे स्थिरता की भावना बढ़ी है। धान-खरीद तंत्र ने भी कृषि-जोखिम घटाया और किसानों के जेब में पैसे डाले हैं।

क्या इस वृद्धि से पूरी संतुष्टि है:- निश्चित रूप से कृषि के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की सरकारों और किसानों दोनों ने ही काफी काम किया है। कृषि में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। देश को कृषि उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में छत्तीसगढ़ प्रदेश ने भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पिछले 25 वर्षों में किसानों की उपज बढ़ी, कृषि बजट- प्राथमिकता बेहतर रही है। परंतु अभी भी किसान-आय,फसल विविधीकरण, सिंचाई, प्रसंस्करण और विपणन-श्रृंखला में हमें लंबा रास्ता तय करना है। छोटे और सीमांत किसानों की पूँजी व तकनीक तक पहुँच सीमित है, और मनरेगा जैसी कृषि प्रतिद्वंदी योजनाओं तथा तथा सस्ता एवं मुफ्त चावल जैसी योजनाओं से कृषि श्रम-लागत श्रम-संकट बढ़ रहा है।

*सिंचाई की रफ्तार और ‘सालभर सुनिश्चित सिंचाई’ का लक्ष्य की चुनौती:-* • वर्तमान नेट सिंचित क्षेत्र लगभग 23 प्रतिशत के आसपास आँका जाता है। • वृद्धि-दर बहुत धीमी, औसतन लगभग 0.43 प्रतिशत अंक प्रतिवर्ष। इस दर पर नेट सिंचित क्षेत्र को 75 प्रतिशत तक पहुँचने में करीब 122 वर्ष लगेंगे। (यह राज्य-दस्तावेजों पर आधारित आकलन है। ) • *हाल के कुछेक सालों में सोलर ऊर्जा आधारित कृषि पंपों की स्थापना की दिशा में केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार की योजनाओं से यह रफ्तार काफी बढ़ रही है जो कि एक आश्वस्त करने वाली स्थिति है।* कुल मिलाकर लक्ष्य कठिन जरूर है पर असंभव बिल्कुल नहीं।

अगले 25 वर्षों के ठोस लक्ष्य और प्राथमिकताएँ : • किसान-आय में तीव्र वृद्धि, लागत घटाने, मूल्य-सुनिश्चितता, प्रसंस्करण और ब्रांडिंग पर फोकस। • फसल-विविधीकरण को मिशन मोड में, औषधीय व सुगंधीय पौधे, मसाले, मिलेट्स, सुपर-फूड, ऑर्गेनिक उत्पादन, इंटर-क्रॉपिंग और मल्टी-लेवल फार्मिंग के साथ कुल क्षेत्र का 20–25 प्रतिशत हिस्सेदारी का लक्ष्य। • GI-आधारित राज्य-ब्रांडिंग, जीराफूल, नगरी दूबराज के बाद प्रस्तावित सूची की किस्मों के लिए GI-डॉज़ियर, किसान-कलेक्टिव और ट्रेसेबिलिटी। • सिंचाई में ब्रेकथ्रू, माइक्रो-सिंचाई, खेत-तालाब, जल-संग्रहण, फीडर नहरें, मल्टी-यूटिलिटी जल-ढाँचा, और नेचुरल ग्रीनहाउस जैसे किफायती संरक्षण-मॉडल का बड़े पैमाने पर विस्तार। • तकनीक और कौशल, ड्रोन, डिजिटल-फार्मिंग, जैव-इनपुट का स्थानीय निर्माण और गुणवत्ता-आश्वासन। •

महिला व युवा-किसान उद्यमिता, FPO आधारित प्रसंस्करण-क्लस्टर, हर तहसील या जिले में कम से कम दो प्रसंस्करण-हब या मंडी-क्लस्टर। • नीति-निर्माण में अनुभवी प्रगतिशील किसानों की भागीदारी को अनिवार्य सिद्धांत। छत्तीसगढ़ की कृषि 25 वर्षों में उत्पादन-वृद्धि से आय-केंद्रित नवाचार की ओर लगातार बढ़ रही है। MDBP-16 जैसी उच्च-उपज, कम-पानी काली मिर्च और नेचुरल ग्रीनहाउस जैसे कम लागत, स्थायित्व-समर्थ मॉडल यह दिखाते हैं कि स्थानीय बुद्धि और वैज्ञानिक अनुशासन मिलकर वैश्विक प्रतिस्पर्धा गढ़ सकते हैं। अब ज़रूरत है कि सिंचाई की रफ्तार को कई गुना बढ़ाया जाए, GI-ब्रांडिंग को बाज़ार-जोड़ तक ले जाया जाए, और प्रसंस्करण व निर्यात-क्षमता पर राज्य-स्तरीय ब्लूप्रिंट लागू किया जाए। तभी ‘धान का कटोरा’ हरित नवाचार और सतत समृद्धि का प्रतीक और देश का अगुआ राज्य बनेगा। और तब छत्तीसगढ़िया किसान भी गर्व से कहेगा 'छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया' ।

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