अभावो का आदर्श
  • Post by Admin on Thursday, Jun 12, 2025
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गजेंन्द्र बख्शी : कष्टों अभावो में रहकर गुजर बसर करना आत्मीयता का बोध कराता रहता है। जीवन के दौर में उतार चढ़ाव निश्चय है जिससे कोई अछूता नहीं हो सकता,कितने ही क्षणो में आभास हो ही जाता है कि किसी विपरीत परिस्थिति की ऒर अग्रसर हो रहे है। उसे रोक पाना सम्भव नहीं रहता।

जिसने अभाव को नहीं भोगा वह जीवन के यथार्थ से कभी परिचित नहीं रहेगा अभाव ही जीवन के रहस्य को समझाता है। जिस प्रकार (भूलन द मेज़ फ़िल्म) भूलना कांदा संजीव बख्शी के उपन्यास के पात्र गंजहा अभाव ग्रस्त जीवन बसर करते हुए मरणासन्न स्थिति में रहते हुए निरपराध होते हुए भी सजा भुगतने जेल में निरुद्ध होते ही उसकी काया दुरुस्त हो जाती है यही जीवन के कष्टो का रहस्य है।

उसे निरपराध होने का बोध नहीं होता बल्कि अपने कष्टो से मुक्ति पाने के लिए ख़ुशी होती है। जिनके बदले अपराध की स्वीकृति देता है उनका कृतज्ञ हो जाता है। और अभावो का आदर्श स्थापित करता है। यही जीवन का सत्य हैँ और अभावो का आदर्श है।

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